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रात के सन्नाटे को चीरती
एक दर्द-भरी चीख!
और सब कुछ शांत!
जैसे नदियों के संगम पर–
टकराती धाराओं का शोर!
और मन में टकराते द्वंद्व!
द्वन्द्वों से बाहर आता एक शब्द–'आदमी'
आदमी ने बहुत कुछ बदला
बदलता जा रहा है, पर
नहीं बदली इसके भीतर की दरिंदगी!
आज भी आदमी दरिंदा है
दरिंदगी हर हाल में जिंदा है!
अपनी
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