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छोड़! मौन की भाषा
आओ हम सब मिलकर बोलें–
जीवन के यथार्थ की भाषा
जिसके अन्तस में बसती हो
विगलित जीवन की परिभाषा
मत बोल! मौन की भाषा।
जिन्होंने सबका पेट भरा
उनको भी जीने का हक है
क्यों भूल गए सुख-साधन में
इनके जीवन का सुख-दान!
रे नादान!
भौतिक सुख की इस आँधी में
जीवन-मूल्यों को पहचान!
यह जीवन है कुछ क्षण का
क्यों करता इतना अभिमान?
इनकी विपन्नता के हरण हेतु
क्यों नहीं त्यागता स्वार्थ?
इनके दुःख के निवारणार्थ
दे दे तू इनका अधिकार!
आओ इनकी –
स्वर-भाषा बनकर
अपनायें एक नई भाषा
अब छोड़! मौन की भाषा!!
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