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उनकी झल्लाहट !
मन को कर देतीं हैं आहत !
उनकी –– वे हिचकियाँ !
कर देती हैं–– मर्माहत !
दुःख- दर्द देखा नहीं जाता !
कलेजा मुँह को आ जाता !
वो कोई और नहीं ,
वो हैं हम सब की
अपनी ही बेटियाँ !
नारी स्वातंत्र्य के
इस युग में भी कैद हैं –
बंदिशों की सलाखों में !
वो जीती हैं आज भी
दहशत के सायों में !
बाजार –– हाट या हों –
कालेज के विस्तृत परिसर !
सामाजिक या अन्य विभाग !
सर्वत्र उपस्थित गुरुघण्टाल !
जी सर ! यस सर ! कहतीं
नो सर ! नहीं कह सकतीं
हरक्षण सहमी-सी रहती
कुलिश सदृश तीक्ष्णतर !
शब्द – शरों से बिंधती !
उन्हें घूरतीं वहशी नजरें
उन वहशी नजरों से बचती
कुछ नहीं कहती –
गोली जैसे चलती ......
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