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आतंक के जुल्मों-सितम से
आजादी की माँग करती –
महिलाएँ अफगान की
अब चल पड़ी हैं…
कोड़े की मार खातीं
तलवारों की–
धारों पर चलतीं
हर जुल्म का प्रतिकार करतीं
निकल पड़ीअपने घरों से…
क्या रोक सकेगी,आतंक की गोली?
इनकी आजादी की बोली!
बात-बात पर भारत में–
मानव-अधिकारों की
बातें करने वाले! चुप क्यों हो?
सब भूल गए अपने इरादे!
शर्म करो! शर्म करो!
मौन छोड़ो!
गर्व तोड़ो!!
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