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अक्षरों में उलझे
मन के जज़्बात
शायद! कभी पढ़ पाते?
मजलूम जिंदगी की
आँखों की भाषा!
कभी समझ पाते?
एक दिन व
एक दर्द-भरी रात
जिसको सहना–
कितना मुश्किल-भरा
होता है काम!
जिसने समेटे हैं
पूरी कायनात!
इसमें मजबूर आम आदमी के
दास्तान-ए-जिंदगी की–
पूरी किताब! No posts
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