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मैं एक दरख़्त उसके सफर में अपने नाम का छोड़ आया हूं
एक उम्मीद में कि एक दिन थक कर वहां आराम करेगा
और सोचेगा कि क्या पाया क्या खोया इस सफर में
तो मेरे होने या न होने का उसे ख्याल आयेगा
फिर शायद लौट आने की चाहत दिल में आ जाए
और लौट कर मुझे अपने सीने से लगाएगा
मलाल करेगा अपने हर फैसले पर जो उसने लिया था
और अपने आंसुओ से मुझे तर कर जायेगा
मैं उसको तसल्ली दिलाने की जद-ओ-जहद करता रहूंगा
मगर उसके बाहों के
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