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अर्ज़ से उठ कर अफ़लाक छूने आया हूं
अमावश से बाहर निकलो तुम्हें महताब बनाने आया हूं
ख़ुद को मैं आफताब हरगिज़ नहीं समझता
मगर अपने नूर से तुम्हें और निखारने आया हूं
मैं तुम्हारे लिए ही जलता हूं
तुम पे रोशनी बिखरने आया हूं
मेरा फिक्र जो तेरे लिए हैं गहन लगती होंगी
मगर तुम मोहब्बत हो बुरी नज़र से बचाने आया हूं।
अमावश से बाहर निकलो तुम्हें महताब बनाने आया हूं
ख़ुद को मैं आफताब हरगिज़ नहीं समझता
मगर अपने नूर से तुम्हें और निखारने आया हूं
मैं तुम्हारे लिए ही जलता हूं
तुम पे रोशनी बिखरने आया हूं
मेरा फिक्र जो तेरे लिए हैं गहन लगती होंगी
मगर तुम मोहब्बत हो बुरी नज़र से बचाने आया हूं।
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