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मै घर जाता हूँ
तुम्हारी तस्वीर देखता हूँ
फ़िर मर जाता हूँ
वो……
वो जो ख़त लिखे थे मैंने तुम्हें
जो मैं कभी दे ना सका
दोबारा पढ़ता हूँ
और शब्दों मे उकर जाता हूँ
घर से तो निकलता हूँ कुछ इस तरह
कि जैसे बहुत
ज़रूरी काम से जाना हो
गली से निकलता हूँ ज़रूर लेकिन
ना जाने फिर किधर जाता हूँ
समेटता हूँ ख़ुद को हर सुबह
तेरे इंतज़ार को
फिर शाम होते ही बिखर जाता हूँ
मै घर जाता हूँ
तुम्हारी तस्वीर देखता हूँ
फ़िर मर जाता हूँ
जानता है जमाने में हर कोई
सारा जहाँ ये जानता है कि
मै तुम्हें चाहता हूँ
पूछता है जब कोई
तो मैं साफ़ मुकर जाता हूँ
रचना :पुष्पेंद्र पाल सिंह
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