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तू कुजा मन कुजा
मन कुजा तू कुजा
मजाज़ी में, हक़ीक़ी में
फ़र्क क्या है ये बता
मैं शब-ए-फ़िराक़
तू ख़्वाब-ए-विसाल
मेरे स्याह बादबान पे
है तेरा रंग-ए-जमाल
मैं पैरहन-ए-दरवेश
तू ताज-ए-शहंशाह
मैं सजदा-ए-सवाली
तू रहमत-ए-ख़ुदा
मैं सवाल-ओ-ज़वाल
तो तू जवाब-ओ-उरूज़
रहमोकरम तेरा बहता चले
बन दरिया-ए-नूर बदस्तूर
तू कुजा मन कुजा
मन कुजा तू कुजा
अक्स और शख़्स में
फ़र्क क्या है दे बता
जिंदगी के दश्त-ए-ग़म में
तू सुकून-ए-नखलिस्तान
मेरी हर बदगुमानी पे
तू बख्शता दीन-ओ-ईमान
जैसे दौर-ए-हिज्र में
हो जाए दीदार-ए-यार
तेरी नज़र-ए-इनायत से
मिले मुसर्रत-ओ-ख़ुशी बेशुमार
मैं रक़्स-ए-परवाना
ना जानूं हम्द-ओ-सना
जल जाना मुकद्दर मेरा
होके फ़ना जाऊं तुझमें समा
तू कुजा मन कुजा
मन कुजा तू कुजा
मुसाफ़िर में, मंज़िल में
फ़र्क क्या है ये बता…
– पुष्पेंद्र राठी
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