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वार तबस्सुम के मैं सहता रहूँ
तू हंँसती रहे मैं तकता रहूंँ
आँखों ही आँखों में सब कुछ
तू कहती रहे मैं सुनता रहूंँ
बातों जज़्बातों की बारिश में
संग-संग तेरे मैं भीगता रहूंँ
इश्क़ ही इश्क़ भरी हो ग़ज़ल
जहाँ मतला तू मैं मक़ता रहूंँ
×××
©पुरुषोत्तम
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