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Romantic PoetryPoetry1 min read

सावन के महीने में

PurushottamPurushottam August 29, 2021
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वो गांँव आई थी सावन के महीने में,

जला गई इश्क की लौ मेरे सीने में।


झूलते देखा जबसे बाग के झूले में,

बिना उसके मजा नहीं रहा जीने में।


कुछ ही शाम साथ बिता था उसके,

अब किससे बात करू बाबू सोने में।


पता चला वो अपने शहर चली गई,

उलझा कर मुझे अपने जादू टोने में।


ढूंँढ रहा हूंँ मैं अब उसको दर-ब-दर,

जाने दुबक गई कहांँ किस कोने में।

×××

©पुरुषोत्तम


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