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सात संदूकों में बंद कोई राज़ हो तुम
मेरे सर की पगड़ी मेरा ताज हो तुम
जब से तुम ने है जन्म लिया तब से ही
मेरे जीवन का संगीत मेरा साज़ हो तुम
उर से लगाया कभी कंधे पर घुमाया तुम्हें
अपने पापा की परी मेरा नाज़ हो तुम
आई एक रूप में मेरी नन्हीं गुड़िया मगर
कभी बहन कभी मांँ का अंदाज़ हो तुम
चले जाओगी छोड़ के पिया घर एक दिन
कल का भरोसा नहीं मेरा आज़ हो तुम
×××
©पुरुषोत्तम
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