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समंदर अपनी रवानी में है
क़दम उसका ज़वानी में है
जमाल का कमाल देखो
हर शख्स की कहानी में है
चेहरा देखा था उसने कभी
अक्स अब तक पानी में है
ये जो पीछे घूम रहे तुम्हारे
मत समझना नादानी में है
दिल दिया जिसे रहने को
वो अब तक भिवानी में है
क़िस्सा जो भूल चुके हैं वो
याद मुझको ज़बानी में है
तुझमें वो बात कहांँ "पुरु"
मज़ा जो ग़ज़लख़्वानी में है
×××
©पुरुषोत्तम
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