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कितना अबोध हो गया आजकल जमाना,
नए पत्थर की चाह में खो रहा हीरा पुराना।
जिस्म की प्यास तुम जहांँ चाहो मिटा लो,
रूह गर प्यासी हो तो मेरे पास आ जाना।
×××
©पुरुषोत्तम
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कितना अबोध हो गया आजकल जमाना,
नए पत्थर की चाह में खो रहा हीरा पुराना।
जिस्म की प्यास तुम जहांँ चाहो मिटा लो,
रूह गर प्यासी हो तो मेरे पास आ जाना।
×××
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