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अपनी नज़ाकत दिखाकर जो कयामत ढाती हो
कसम से आजकल हमें तुम बहुत तड़पाती हो
चुप कराने के लिए होठों पर उंँगली रखते हैं सब
और तुम मेरे होठों पर अपना होठ रख जाती हो
मेरी जांँ तेरी मासूमियत का अब क्या ही कहूंँ मैं
मुझे मनाने के लिए तुम क्यों ख़ुद रूठ जाती हो
तुम्हें मनाता इसलिए हूंँ कि इसमें मेरा फायदा है
मान जाने के बाद तुम मुझको गले से लगाती हो
समझने लगा हूंँ अब तेरी आंँखों की बदमाशियांँ
इशारों ही इशारों में जो तुम मुझसे कह जाती हो
पास आता हूंँ मैं जब भी क्यों दूर भाग जाती हो
जाने क्यों स्पर्श पाकर तुम हया से मर जाती हो
उलझन में हूंँ तुम्हीं बता दो क्यों पास बुलाती हो
जवाब देने के बदले क्यों मुझमें सिमट जाती हो
×××
©पुरुषोत्तम
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