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पीड़ा के इस महासमर में
जो जीता वह अर्जुन होगा !
अंजुरि भर-भर कलमें रोपीं
पुष्प न कोई भी खिल पाया,
कंटक के संग जीवन बीता
है सुगंध क्या, समझ न आया,
यादों के फैले सागर में
जो उतरा, वह निर्गुन होगा !
कथ्य-अकथ मकड़ी का जाला
ज्यों चन्दन के संग हो विषधर,
मौन साधना करता जोगी
होते बन्द नयन हैं हितकर,
साँसों के इस पिंजरे-घर में
जो ठहरा, वह चुनमुन होगा !
चले लिए डोली कहार जब
मुँह ढाँपे रोती थी दुल्हन,
जब-जब पाँव थके थे उनके
रोम-रोम में होती सिहरन,
सूनी-सूनी झुकी नज़र में
जो ढलका, वह अशकुन होगा !
-प्रकाश "सूना"
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