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पवित्र भी मैं
पाप भी मैं
शांत भी
अशांत भी
पाप मैं हूँ कंस में
कृष्ण में पवित्र हूँ
शांत मैं हूँ राम में
रावण में अशांत हूँ
शुद्ध भी मैं
बुद्ध भी मैं
क्षुब्ध भी
अशुद्ध भी
शुद्ध मैं हूँ बुद्ध में
बुद्ध में ही शुद्ध हूँ
क्षुब्ध मैं हूँ द्वेष में
लोभ में अशुद्ध हूँ
निर्मल मैं
कोमल मैं
चञ्चल भी
निश्छल भी
निर्मल हूँ मातृ में
पितृ में ही कोमल हूँ
चञ्चल हूँ बाल्य में
निश्छल हूँ प्रेम में
न ओर में
न छोर में
मैं तो चहुँओर में
भूत में
भविष्य में
मान वर्तमान में
दबाव में
तनाव में
बहाव में
लगाव में
रखे जो जैसे
वैसे मैं भाव में
मन हूँ मैं बहता
मन ही की नाव में...
© प्रशांत सिंह
पाप भी मैं
शांत भी
अशांत भी
पाप मैं हूँ कंस में
कृष्ण में पवित्र हूँ
शांत मैं हूँ राम में
रावण में अशांत हूँ
शुद्ध भी मैं
बुद्ध भी मैं
क्षुब्ध भी
अशुद्ध भी
शुद्ध मैं हूँ बुद्ध में
बुद्ध में ही शुद्ध हूँ
क्षुब्ध मैं हूँ द्वेष में
लोभ में अशुद्ध हूँ
निर्मल मैं
कोमल मैं
चञ्चल भी
निश्छल भी
निर्मल हूँ मातृ में
पितृ में ही कोमल हूँ
चञ्चल हूँ बाल्य में
निश्छल हूँ प्रेम में
न ओर में
न छोर में
मैं तो चहुँओर में
भूत में
भविष्य में
मान वर्तमान में
दबाव में
तनाव में
बहाव में
लगाव में
रखे जो जैसे
वैसे मैं भाव में
मन हूँ मैं बहता
मन ही की नाव में...
© प्रशांत सिंह
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