
तुम मानो या ना मानो, पर मेरी कविता का सार हो तुम।
उम्र भर जो किया है मैने, वो हसीन इंतजार हो तुम।
अक्सर तुम ही कर देती हो बेकरार मुझे,
पर इस बैचेन दुनिया में, मेरा करार हो तुम।
तुम मानो या ना मानो, पर मेरी कविता का सार हो तुम।।
जिसे देख कर मैं ठहर जाऊ, वो दिलकश मकाम हो तुम।
जिसको मैं कभी हारना ना चाहूं, ऐसी एक हसीन तकरार हो तुम।
वक्त हो, अहसास हो, मेरे लिए मेरा संसार हो तुम।
तुम मानो या ना मानो, पर मेरी कविता का सार हो तुम।।
थकान से भरी इस जिंदगी में, छुट्टियों वाला त्योहार हो तुम।
मेरे जीवन की कहानी का, सबसे ज़रूरी किरदार हो तुम।
मेरी जिंदगी, मेरा आसरा, मेरे इस दिल की हकदार हो तुम।
तुम मानो या ना मानो, पर मेरी कविता का सार हो तुम।।
जो चाहिए मुझे उम्र भर, वो खुशियां अपार हो तुम।
मेरा ख्वाब, मेरी ख्वाहिश, मेरे खुदा से मांगी अरदास हो तुम।
सच कहूं तो है मोहब्बत, और उस मोहब्बत का इज़हार हो तुम।
हां ये सच है, मेरी हर कविता का सार हो तुम।।
-Nick's_Thoughts
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