माचिस से घर
हम तीली से,
कभी जल जाते
कभी सीले से।
धूप को तरसे
और बारिश को,
बंद घरों में
तरसे आँगन को।
ए. सी. कमरों में
पीपल को सोचें,
सावन के झूले
हवा के झोंके।
काश छत पर चढ़
बारिश में नहाते,
ठहरे पानी में
कागज़ी नाव चलाते।
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