
Share0 Bookmarks 83 Reads0 Likes
सोचा चांद से आज, मैं सुलह कर लूं
चाय पे बुला कर कुछ, जिरह कर लूं !
आखिर कब तक करूं, नजरंदाज उसे
दिल कहता है फिर दे दूं , आवाज़ उसे !
क्या हुआ जो उसके, नखरों से परेशान हूं
आखिर फितरत से मैं भी, एक इंसान हूं !
साथ उसके मैं, आस्मा का सफर कर लूं
सोचा चांद से आज, मैं सुलह कर लूं !
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments