
हर वक्त हर पल बस सोचता रहूं, अब तुम पर क्या लिखूं।
जो यादें है खास तुम्हारी, या तुम्हे कोई पैगाम लिखूं।
तुम ही कहो मैं क्या लिखूं?
संग तुम्हारे जीनी है मुझे, क्या ऐसी कोई शाम लिखूं।
हर वक्त तुम्हे याद करना, बस यही मेरा एक काम लिखूं।
तुम ही कहो मैं क्या लिखूं?
किया है मुझे बैचेन इतना, इसका तुम पर इल्ज़ाम लिखूं।
सफर, कहानी, कोई किस्सा तुम्हारा, या कोरे कागज पर तुम्हारा नाम लिखूं।
तुम ही कहो मैं क्या लिखूं?
चलो बनाए कुछ नई यादें, जिसका एक हसीन अंजाम लिखूं।
पहुंचे मेरे दिल की याद तुम तक, तो लिखूं कविता या कोई फरमान लिखूं।
तुम ही कहो मैं क्या लिखूं?
नोकझोक और शरारतों से भरी तुम्हारी कोई दास्तान लिखू,
वक्त के संग जो गहरा हो जाए क्या कहीं वो पयाम लिखूं।
तुम ही कहो मैं क्या लिखूं?
तुम्हारी हंसी पर हुं फिदा मैं, ये इज़हार सारे आम लिखूं।
जी करता है तुम्हे राधे मैं खुद को तुम्हारा श्याम लिखूं।
तुम ही कहो मैं क्या लिखूं?
-Nick's_Thoughts
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