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हर शाम कई सवाल होते है
हर सुबह मैं जवाब दूंढती हु
इसी तरह से बीत रही है जिंदगी
और मैं इसके खर्च होने से डरती हूं
कैसे जाने दू यूं ही ये शाम और सुबह मेरी
मैं इसका एक लम्हा भी कम होने से डरती हूं
ए जिन्दगी मैं तुझे खोने से डरती हूं।
~ प्रिया त्रिपाठी
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