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ना जाने किसकी इतनी कमी खल रही है
ना जाने कैसे अब तक साॅंसें चल रही है
फ़कत जिस्म से ज़िन्दा हूॅं ना जाने क्यों
वरना तो जान हर रोज़ ही निकल रही है
देखा बहुत कुछ कि अब मन भर गया है
मेरे ज़िन्दगी की शाम जैसे ढल रही है
मैं आज भी बैठा हूॅं तेरे इंतज़ार में वहीं
मुलाक़ात की ये घड़ियाॅं क्यों टल रही है
ना जाने कैसे अब तक साॅंसें चल रही है
फ़कत जिस्म से ज़िन्दा हूॅं ना जाने क्यों
वरना तो जान हर रोज़ ही निकल रही है
देखा बहुत कुछ कि अब मन भर गया है
मेरे ज़िन्दगी की शाम जैसे ढल रही है
मैं आज भी बैठा हूॅं तेरे इंतज़ार में वहीं
मुलाक़ात की ये घड़ियाॅं क्यों टल रही है
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