
Share0 Bookmarks 0 Reads1 Likes
इंतक़ाम लूॅंगा अपनी अनकही ग़ज़लों में
लब खोलूॅंगा पर गाली में नहीं ग़ज़लों में
यूॅं तो मैंने अश्कों से लिखा नहीं है मगर
दर्द छलक आया है कहीं-कहीं ग़ज़लों में
बेशक कुछ गीले-सिकवे हैं तुमसे तो
मैंने कर दिया शिकायत यूॅं हीं ग़ज़लों में
लब खोलूॅंगा पर गाली में नहीं ग़ज़लों में
यूॅं तो मैंने अश्कों से लिखा नहीं है मगर
दर्द छलक आया है कहीं-कहीं ग़ज़लों में
बेशक कुछ गीले-सिकवे हैं तुमसे तो
मैंने कर दिया शिकायत यूॅं हीं ग़ज़लों में
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments