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दिल की आरज़ू है कि तू मेरे दिल में ठहरे
मालूम हो मेरे दिल में ज़ख़्म है कितने गहरे
ज़माने को क्यों है तकलीफ़ हमारे रिश्ते से
क्यों तुम्हारे मेरे दरमियान है बने इतने पहरे
वो लम्हें जिन्हें तुम भूल चुकी हो कब का
"प्रियम" के ज़हन में बस गए हैं यादें सुनहरे
मालूम हो मेरे दिल में ज़ख़्म है कितने गहरे
ज़माने को क्यों है तकलीफ़ हमारे रिश्ते से
क्यों तुम्हारे मेरे दरमियान है बने इतने पहरे
वो लम्हें जिन्हें तुम भूल चुकी हो कब का
"प्रियम" के ज़हन में बस गए हैं यादें सुनहरे
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