
आज बहुत दिनों बाद कलम उठाई है,
एक खयाल है शायद,
जिसे बाहर आने की तलब आयी है |
कवि नहीं हुँ, तो उमीद नहीं है इसे पूरा करने की
एक खयाल है अधुरा करने की |
आज एडम और इव की कहानी फिर याद आई
एडम का वो पहला दृश्य धरती का
और इव की पहली अंगड़ाई |
काफी बार इस बहस मे फस चुकी हुँ
खुद पर कई बार हंस चुकी हुँ
क्या सच में इव ही मनुष्य के पतन का कारण थी
या बस पुरुष प्रधान समाज की एक कीर्ति असाधारण सी |
खुद से ये सवाल हर रोज करती हुँ
इव तब भी गलत थी और अब भी गलत है
ये हर रोज़ पढ़ती हुँ |
आज जब कलम फिर उठाई है
तब जाके ये समझ आई है,
इव को मिलनी चाहिए थी कड़ी सजा
एक सेब ने छिन लिया सबसे स्वर्ग का मज़ा |
आज सोचती हुँ कि क्या हुआ होता अगर इव ने वो सेब ना खाया होता
शायद इस पुरुष प्रधान समाज में इतना दिमाग ही ना आया होता|
अगर वह प्यार में पड़ कर एडम को सेब ना खिलती,
इस समय हमारी जिंदगी हँस-खेल रही होती|
कोई पुरुष ना होता ज्ञान देने को
Shayad तब यह स्वर्ग होता कहने को |
क्यूँ प्रसिद्धि न्यूटन और आर्यभट्ट को मिली?
जब इव के सेब खाने पर धरती हिली!
यह पुरुष प्रधान समाज जो इतनी हेकड़ी दिखाता है,
हज़ारे करोड़ों किताबे इव की ग़लती पर छापे जाता है,
Kya ये बात उसकी समझ में आई है?
ये सारी knowledge हमने इव से ही तो पायी है |
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