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जब तुम बैठो समीप

Priya KusumPriya Kusum October 12, 2021
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फूल-पत्तियाँ झर गए

उग आयी अब झाड़

मन-उपवन सूना भया

तुम बिन सब उजाड़। 


नहीं भावे मयूर-नृत्य

ना कोयलिया की कूक

खीर भी खारी लगे

मोहे नहीं लागे भूख। 


पास तुम्हारे चली आऊं

तोड़ दूँ जग की रीत

होंठों की मर्यादा है

समझ लो हृदय की प्रीत। 


पार हो गयी सीमा से

अब विरह की पीर

संदेश तुमको यही प्रेषित

टूट चुका मेरा धीर। 


द्वार पर तुम आओ

घर-आंगन सजे दीप

मेरी दीवाली तब मने

जब तुम बैठो समीप। 

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