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मैंने जीवन में दो तरह के पुरुषों को देखा,
पहले वो हैं जो बांधना चाहते है
स्त्री को घर की चारदीवारी में,
सीमित रखना चाहते हैं उसका वजूद
खाना बनाने..परिवार-बच्चे संभालने तक,
जो उसकी हंसी को भी
कैद कर लेना चाहते हैं बस अपने तक.
दूसरे वो हैं जो चाहते हैं कि
भूल जाए स्त्री रिश्ते-नाते
त्याग दे प्रेम और ममता,
अपनी संवेदनाओ को परे रख
सफलता का शिखर चूमे
बुलंदी का आसमान छुए
व बन जाए आधुनिक.
हो सकता है
ऊपर जो मैंने कहा वो अति हो,
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