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जब आप किसी छह-सात माह के नन्हें बालक को घर लाते है
उसका जी बहलाने को कितने जतन करते है
जाने क्या-क्या उपाय आजमाते है
उसके लिये खिलौने लाते है, तालियां बजाते हैं
अजीबो- गरीब मुंह बनाकर उसको हंसाते है
उसके जैसे हुंकार भरते है, उसके बदन को गुदगुदाते है
फिर भी रोने लगे अगर वो
तो उसे गोद में उठाते है, हवा में झुलाते है
उसके लिए अलग-अलग लोरियां गाते है
उसकी एक मुस्कुराहट देखने को
आप कितना ज़ोर लगाते है
मानो कोई करिश्मा हुआ हो
हर आने-जाने वाले को ऐसे उसकी हंसी दिखाते है
जब दुनिया मुझे प्रेम देना बंद कर देती है
और मैं अकेला हो जाता हूँ
तो छह-सात माह का ऐसा ही बालक बन जाना चाहता हूं।
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