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नहीं देखना चाहती मैं अब किसी की राह
फ़िर ये इंतज़ार क्यू है...
मेरे हर इकरार पर कर चुके हो तुम इंकार
फ़िर ये दिल बेकरार क्यू है...
बीत चुके कितने ही सावन सूखे
फ़िर इस फ़ागुन में नया खुमार क्यू है...
मोड़ लिया मुहँ तुमसे कितनी दफ़ा मैंने
पर फ़िर लौट आया हर कदम
तुमसे दूर जाने की मेरी हर कोशिश बेकार क्यू है...
ऐसा क्या है तुममे
ज़रा मुझे भी तो बताओ ना
एक तुम्ही से मुझे इतना प्यार क्यू है...
तुमसे पूछुन्गी तो कहोगे
"ऐसा सबके साथ होता है"
पर इन सबमें मेरा भी शुमार क्यू है ?
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