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बड़ी ही बेईमान है यें हसरतें
जाने किस चीज़ पे दिल आ जाए
भ्रम और संशय की लड़ाई में
जाने किस ओर करवट खा जाए
ईमान सम्भाले रखना साहेब यें
नेकी और बदी का फ़लसफ़ा है
पकड़ के रखना अपने सारे करम
हाथों से रेत की तरह फिसलता है
देखा है हमने तबाही गुलिस्ताँ
बाग़ भी सिसकियों की गवाही करता है
लोगों की आह पर महल बनते नहीं
छीन के हक़ कहा सुकून पड़ता है
ना देना धोखा के हिसाब होता है
ज़मीर यूँ ही हलक़ होता है
पोंछ लो कितनी भी लकीर हाथों की
किए का कालिख कहा साफ़ होता है
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