ग़ज़ल (बहर 1222 1222 1222 1222)'s image
Love PoetryPoetry1 min read

ग़ज़ल (बहर 1222 1222 1222 1222)

Prerit ModiPrerit Modi May 9, 2023
Share0 Bookmarks 42 Reads1 Likes

ज़रूरत मुश्किलों में हो कोई अपना नहीं होता

गुज़ारा ज़िंदगी का अब मेरा तन्हा नहीं होता


तमन्ना थी मुझे तेरी, तेरी ही थी मुझे ख़्वाहिश 

अगर तू साथ होता तो मैं यूँ बिखरा नहीं होता


किसी भी हाल में जानाँ तुझे अपना बनाता मैं 

क़फस गर दहर में मेरी रिवाज़ो का नहीं होता 


किया क्या हाल है फ़िरदौस दुनिया का बशर तूने 

किया होता जतन थोड़ा जहाँ उजड़ा नहीं होता 


हज़ारों ग़म मेरे हिस्से में क्यों लिक्खे ख़ुदा तूने

मुक़म्मल क्यों कभी मेरा कोई सपना नहीं होता


न जाने किस तरह कटती मेरी ये ज़िंदगी लम्बी

अगर बच्चा मेरे दिल में कोई ज़िंदा नहीं होता


कड़कती धूप ने रोका मुझे रोका था काँटों ने 

नहीं होता "सफ़र" पूरा अगर जज़्बा नहीं होता


-प्रेरित "सफ़र"


No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts