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दर्द की ख्वाहिश थी की आराम मिले

PRAVEEN BHARDWAJPRAVEEN BHARDWAJ September 14, 2021
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हम चाहते थे कि मुझे उस का पैग़ाम मिले

यानी दर्द की ख्वाहिश थी की आराम मिले


एक ज़िन्दगी थी जो गमों के पास ही गुज़री

हमारी इस सब्र को भी उस का इनाम मिले


हारने का ग़म नहीं जितने की खुशी क्या ह

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