
Share2 Bookmarks 0 Reads1 Likes
वो अंदाज़ ए बयाँ वो सादापन
सम्मान सभी का करना भी
जब याद कभी घर की आती हो
आह को छुप कर भरना भी
वो घर के भीतर बैठे बैठे
सपने बाहर के बुनना भी
वो मेरी याद में लेट रात भर
छत पर तारे गिनना भी
तेरी हर एक शमा का जैसे
अब भी मैं परवाना हूँ
पर रिश्तें जैसे निभा रही तुम
मैं इसका भी दीवाना हूँ।
वो भरी दुपहरी घर से बाहर
छिप कर मिलने आना भी
वो एक इशारा पाकर तेरा
तेरा हॉले से शर्माना भी
वो कच्ची पक्की गलियों में
तेरी खातिर मंडराना भी
एक झलक पाने पर तेरी
मेरा खुश हो जाना भी
याद बहुत करता हूँ तुमको
अब याद का खुद पैमाना हूँ
पर रिश्तें जैसे निभा रही तुम
मैं इसका भी दीवाना हूँ।
वो घर से निकल बिना वजह
गली तेरी मुड़ जाना भी।
वो मिलते मिलते अनजाने में
तुमसे दिल जुड़ जाना भी
इश्क़ किया है तुमसे पर
तेरा यूँ खो जाना भी
आकाश को तेरी बाँह समझ
लिपट मेरा रो जाना भी।
याद गली है करती तुझको
और भरता मैं हर्जाना हूँ
पर रिश्ते जैसे निभा रही तुम
मैं इसका दीवाना हूँ।
गुमान हुआ करता है इसका
सच तुमको था पहचाना भी
प्रेम के बंधन में तेरा
यूँ मुझको बांध के जाना भी
प्रेम की ख़ातिर मर्यादा को
भूल कभी मत जाना जी
जैसे मुझको बांध लिया था
उसको भी अपनाना जी
खुशियाँ सारी मिलें नई
मैं गुजरा हुआ ज़माना हूँ
रिश्ते जैसे निभा रही तुम
मैं इसका दीवाना हूँ।
~विचार_प्रत्यक्ष
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments