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वो अंदाज़ ए बयाँ वो सादापन
सम्मान सभी का करना भी
जब याद कभी घर की आती हो
आह को छुप कर भरना भी
वो घर के भीतर बैठे बैठे
सपने बाहर के बुनना भी
वो मेरी याद में लेट रात भर
छत पर तारे गिनना भी
तेरी हर एक शमा का जैसे
अब भी मैं परवाना हूँ
पर रिश्तें जैसे निभा रही तुम
मैं इसका भी दीवाना हूँ।
वो भरी दुपहरी घर से बाहर
छिप कर मिलने आना भी
वो एक इशारा पाकर तेरा
तेरा हॉले से शर्माना भी
वो कच्ची पक्की गलियों में
तेरी खातिर मंडराना भी
एक झलक पाने पर तेरी
मेरा खुश हो जाना भी
याद बहुत करता हूँ तुमको
अब याद का खुद पैमाना हूँ
पर रिश्तें जैसे निभा रही तुम
मैं इसका भी दीवाना हूँ।
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