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आज दिल फिर बोल पड़ा
अब तलक तो शान्त था
सूना था एकांत था
अब तो है ज़िद पर अड़ा
आज दिल फ़िर बोल पड़ा।
भूल गया था इसे कहीं
इक रोज चलते फिरते यूँ ही
वहीं रस्ते में मिला खड़ा
आज दिल फ़िर बोल पड़ा।
ले गया था इसे कोई जो भी
ख़्वाहिश मन बहलाने की होगी
पर ये भी है खुद्दार बड़ा
आज दिल फ़िर बोल पड़ा
वो इसे नही भाया होगा
घर याद इसे फिर आया होगा
फिर घर को वापस निकल पड़ा
आज दिल फिर बोल पड़ा
है इसे शिकायत मुझसे अब
क्यों वहाँ इसे दे आया तब
हर रोज़ यही कहता है अब
बुरा तूने किया बड़ा
आज दिल फ़िर बोल पड़ा
अब शान्त पड़ा रहता हूँ मैं
और याद यही करता हूँ मैं
क्यों प्यार उसे करता हूँ मैं
वो था कितना बेदर्द बड़ा
आज दिल फिर बोल पड़ा।
जब ये रोता चुप करता मैं
चुप ये करता जब रोता मैं
तब काश समझता होता मैं
दिल की राहों में ऐब बड़ा
आज दिल फिर बोल पड़ा।
~विचार_प्रत्यक्ष
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