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विशिष्ट होती हैं स्त्रियां
तन से मन से,
व्यवहार - विचार से,
छनकती मधुर आवाज से,
मोहक मुस्कान से,
प्रकृति प्रदत्त सज-धज से।
इसलिए ही शायद उन्हें
विशिष्ट अनुभव कराने
वाले पुरुष घेर लेते हैं,
उनके मन आँगन को।
उन्हें अच्छा लगता है
अपनी विशिष्टता का
बखान सुनना!
गेंदा और गुलाब में
मोगरा चुनना।
प्रेम की सेज पर वो
नहीं सजाना
चाहतीं काँटों से लिपटे
फूलों को।
वो चाहती हैं प्रेम में
प्रेममय हो जाना।
स्त्रियों ने प्रेम के
सफेद रंग की जगह
हमेशा चुना
लाल रंग हो जाना ।
लाल रंग के आकर्षण ने
हमेशा ही छला उनको।
मगर स्त्रियों ने
हमेशा निभाया
लाल रंग की मर्यादा को।
वो लिपटी रहीं जीवन पर्यंत
लाल रंग से भीतर - बाहर।
स्त्री से मिलना तो
देखना उसके अंतःकरण
की अपरिमित
जीवन ऊर्जा को,
कोमल सुंदरता को,
प्रेममय हो जाने की
आकांक्षा को,
निराश मन की व्यथा को,
उसके अकेलेपन की सदा को।
मुस्कुराती स्त्रियां हर पल उदास
होती हैं भीतर।
भीतर की उग्रता , वेदना कभी
नहीं छलकती उनके चेहरे पर।
स्त्रियां प्रेम की सुंदरता
मन से परखती हैं।
और उसकी सत्यता आंखों से।
स्त्रियों को अच्छा लगता है
प्रेम हो जाना ।
वो नहीं चाहती बाँटना
वेदना और दुःख।
स्त्री को जानने के लिए
स्त्री का हो जाने की बजाय,
तुम चुनना स्त्री में खो जाना।
विशिष्ट स्त्रियां कहीं अलग नहीं होती,
वो होती हैं माओं में,
मित्रों में,
प्रेमिकाओं में,
पत्नियों में,
और समाज
से लड़ती
नायिकाओं में।
~प्रतिमा श्रीवास्तव
०८/०३/२०२२
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष!
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