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एक छोटी सी कहानी जो कहानी से
ज्यादा जीवन अंश है ,
एक महान वैज्ञानिक, नीतिशास्त्री और दार्शनिक की जो 1724 में जर्मनी में जन्मे ।
इनकी महानता और विद्वत्ता से साहित्य और दर्शन जितना हतप्रभ था उतना ही इनकी जीवन विधा से। समय के पाबंद ऐसे कि जैसे घड़ी की सुई जो कभी ना रुकती ना थकती ना देर से ही चलती।
रूखे सूखे व्यक्ति थे स्वभाव और
रहन सहन से।
कुछ - कुछ आत्ममुग्ध, जिसे स्वयं में ही सम्पूर्ण संसार दिखता था ,
कुछ - कुछ भावनाओं सामाजिक समरसताओं से विहीन।
कई विद्वानों ने इनको गणित की उपाधि भी दी थी , जिसके लिए घड़ी की गिनतियों की उपादेयता व्यक्तियों की भावनाओं से ज्यादा महत्वपूर्ण थीं..
नाम था इमानुएल कांट ।
कहते हैं ईश्वर प्रेम से सभी को मिलवाता है एक दिन! किसी ना किसी रूप में व्यक्ति के समक्ष प्रस्तुत कर के ,
कोई स्वीकार कर लेता है कोई विचार कर लेता है।
एक बार इमानुएल काँट के सम्मोहन में एक स्त्री इतनी विवश हो गई कि उसने इमानुएल के सामने प्रेम का प्रस्ताव रख दिया, इमानुएल ने कहा सोच विचार कर बताऊंगा, और वह स्त्री उनके जवाब की प्रतीक्षा में राह देखती रही।
इमानुएल ने प्रेम प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में हजारों पन्ने लिख डाले...
उन्हें पक्ष में जाने का केवल एक कारण ज्यादा दिखाई पड़ा ,
कि प्रेम का अनुभव होगा,
और नहीं करने पर वह इस अनुभव से
वंचित रह जाएगें।
इस सोच विचार में तीन बरस निकल गए और उन्हें पता ही ना चला।
तीन बरस बाद उन्होंने निर्णय लिया कि
उस स्त्री से मिलना चाहिए,
यह विचार कर जब वह उसके घर पहुंचे
तो दरवाजे पर उनकी उस स्त्री के पिता
से भेंट हुई।
इमानुएल ने कहा कि मैंने बहुत सोच विचार के बाद पाया की केवल एक मत ज्यादा है,
प्रेम की स्वीकृति के पक्ष में
कि इससे प्रेम का अनुभव मिलेगा।
अतः मैं राजी हूँ ...
आपकी पुत्री से विवाह के लिए।
स्त्री के पिता मुस्कुराये..
और बोले ...
तुम्हें ऐसा नहीं लगता ...
एक विचार पर तुम बहुत
ज्यादा समय टिक गए ??
व्यक्ति रुक सकता है ..
एक विचार एक अनिर्णय के साथ
बरसों बरस !!
परन्तु समय नहीं।
तुमने बहुत देर कर दी .!!
मेरी पुत्री का विवाह हो गया है।
और उसकी एक संतान भी है।।
अब जाओ ...
और जब कभी कोई दूसरा प्रस्ताव
तुम्हें मिले तो देर मत करना..
झट स्वीकार कर लेना।!
इमानुएल दुःखी मन से लौट आए!
और इंतजार करने लगे !!
कि फिर शायद कोई प्रेम प्रस्ताव मिले ,
कोई स्त्री फिर शायद उनके प्रेम में पड़े.!
परन्तु
उनके जीवन में फिर
प्रेम घटित ही नहीं हुआ !!!!
क्योंकि फिर किसी स्त्री ने..
प्रेम प्रस्ताव रख्खा ही नहीं उनके समक्ष।
अनिर्णय भी निर्णय
का आकार ले लेता है एक दिन।
इस जगत में जहाँ जीवन मृत्यु ,प्रेम आधार - व्यापार सब क्षणिक है,
वहाँ सिर्फ विचार विवेचना , हानि- लाभ
पर मंथन से क्या हासिल हो सकता है
किसी को ??
ये इमानुएल कांट जैसा विद्वान भी नहीं समझ पाया !!
और वक्त रेत की तरह मुट्ठी से फिसल
गया उसकी हथेली से।
विद्वता का अहम
कई बार जीवन के कई सत्यों से
परिचित नहीं होने देता ,
और जीवन के अंतिम क्षणों
को भी कलुषित कर देता है !
किसी एक विचार , एक गलती और
एक अनिर्णय की ग्लानि से।!
शायद इसीलिए ही विद्वानो और
महान दार्शनिकों , कवियोँ , कथाकारों कलाकारों , वैज्ञानिकों के जीवन में एक रिक्तता दिखाई पड़ती रहती है ,
समय - असमय
उनके वक्तव्यों में- कृत्यों में ।
समय की इस धारा में
बहने के लिए जरुरी है,
व्यक्ति का आत्ममुग्धता को परे हटाकर
राह में मिलने वाले हर पथिक के साथ
सहज होना।
सहजता ही विद्वता का असली गुण है।। सफलता और असफलता के बीच
एक महीन रेखा का ही अंतर होता है।
परंतु विद्वत्ता और आत्ममुग्धता
एक सड़क के दो किनारे जैसे हैं...
जो कभी मध्यता का अनुभव नहीं कर पाते।
- प्रतिमा श्रीवास्तव
०६/०४/२०२२
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