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एक द्रौपदी की पुकार सुनकर तुमने उसकी लाज बचाई थी ,
अदृश्य रहकर भी कन्हैया तुमने अपनी महिमा दिखाई थी ।
देखो आज फिर सैकड़ों द्रौपदी चीख-चीख कर तुम्हें पुकार रही हैं ,
शायद कलयुग में इन सबकी आवाज़ें तुम तक नहीं पहुंच पा रही हैं ।
इसलिए तो इनकी आन बचाने को तुम अब आया नहीं करते हो कृष्ण मुरारी ,
वरना इनकी दुर्दशा देखकर हर दुशासन की तुमने अब तक होती बांह उखाड़ी ।
~ प्रतिमा पांडेय
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