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धर्म पर अधर्म हो रहा भारी ,
आ जाओ ना अब गिरधारी ।
सब तरफ नफरत छा गई है ,
कान्हा धरा तुझे पुकार रही है ।
प्रेम की सुधा फिर बरसाने को ,
आ जाओ ना मोहन लेकर राधे को ।
मानव भेष धरे यहां कुछ राक्षस घूम रहे,
पृथ्वी मैय्या का हैं वो सुख चैन छीन रहे ।
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