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कभी कभी तेरी आवाज़ पर रुकूं भी नहीं,,
कि तू पुकारे मुझे और मैं सुनूं भी नहीं।।
इस इन्तेज़ार में ज़िद का भी एक पहलू है,,
किवाड़ खोल दूं और रास्ता तकूं भी नहीं।।
वो दूर हो तो लगे उससे कोई रिश्ता है,,
क़रीब आए तो मैं उसकी कुछ लगूं भी नहीं।।
कि तू पुकारे मुझे और मैं सुनूं भी नहीं।।
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