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तुम मिलो हमसे

Prateek JainPrateek Jain March 18, 2022
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किसी रोज़, कभी फिर
उसी सड़क, उसी गली, उसी वक्त
तुम मिलो हमसे

वही पीला कुर्ता, वही सफेद सलवार,
थोड़ी सा काजल, थोड़ी सी हया
और चुटकी भर नखरा
तुम मिलो हमसे

उन्हीं मुकुराहटों के साथ, उन्हीं आहटों के साथ
उसी लिबास - ए - रुह में लिपटी,
उन्हीं सलवटों के साथ
तुम मिलो हमसे

करो तो थोड़ा सा यत्न, हो एक शाम सुखन
मुझे दस्तरस तुम्हारे दिल तक,
फिर वही बढ़ती धड़कन
तुम मिलो हमसे

शाम के आंग

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