मुकम्मल इक चाहत ए खुदकुशी नहीं हुई
और फिर ये भी कि ढंग की शायरी नहीं हुई
हम मर जाने के वादे से बिछड़े पर ज़िंदा रहे
ये जिन्दगी भी दोस्त कोई जिंदगी नहीं हुई !
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