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कि जनेश्वर पार्क रौनक तो इमामबाड़ा है शान यहाँ की
हम ईद मे मिलते गले और भंडारे मे साथ भोजन करें।
ये विविध संस्कृति, परम्परा मै यहीं देखा करता हूँ
कहीं और नहीं, मै नवाबों के शहर से ताल्लुक रखता हूँ।
मै कविताओं को जीवित रखता हूँ।।
समय के साथ परिवर्तन निश्चित पर इन पीढ़ी मे वो बात नही
शिक्षा है प्राप्त इन्हें लकिन लहज़ा और संस्कार नही।
इस चकाचौंध में मै शहर की तहज़ीब को विलुप्त होते देखता हूँ
छोटे भी मुझसे बनाये दूरी जब शिष्टाचार की बात करता हूँ।
मै कविताओं को जीवित रखता हूँ।।
पहले ही कमरे मे बात बंद थी, अब डिजिटल हुआ ज़माना है
नशा करना कूल समझते, इन्हें अश्लील बातें कौन सिखाता है।
होत
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