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आसमान पर निगाह जो गई, दो परिंदे उड़ते दिखे,
खुश हुआ यूं दिल , किसी ने साथ उड़ान भरी।
मन कुछ इस तरह मचल पड़ा ,परिंदों की तरह उड़ चला।
ऐसे लगे खींचे अपनी ओर, अंबर की डोर।
जीवन की भोर हुई, तन हुआ विभोर।
छाई जो लालिमा ,रक्तिम हुए गाल,
किरणों की मेहंदीे से, हथेलियां हैं लाल।
आया लगे बसंत, हृदय हुआ मकरंद।
भर गई ऊष्मा,बदली थी भंगिमा ।
पंख को विस्तार मिला, अनमोल उपहार मिला।
इठला कर उड़ चली, बादलों की नाव पर ,
भिगोने अपना आंचल, प्यार की बौछार पर।
ना कहीं भय था, ना कोई विषाद ,
अजब सा नशा ,गजब का उन्माद।
कल्पना की उड़ान सही, यह मेरी उड़ान,
अंखियों में भर लिया ,यह मेरा आसमान,
ये मेरा आसमान।
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