माँ's image
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मृत्यु एक शाश्वत सत्य है,

फिर भी मैं उसका सामना करने से डरती हूं,

हर वक्त अपनों की लंबी उम्र की कामना करती हूं।

जीवन का आरंभ किया मां की गोद से,

बेखबर सोती थी निर्बोध मैं।

अठखेलियां खेलती मां के आंचल में छुपी,

कुलांचे भर्ती स्वच्छंद मृगी सी।

मां मेरी चोटी गूंथती, मेरे चेहरे को सवांरती,

नए नमूनों से मेरे परिधानों को तराशती।

उसके बनाए व्यंजन होते स्वादिष्ट,

तन और मन हो जाता था हमारा तृप्त।

परीक्षा के दिनों में जब मैं देर रात तक जागती,

साथ देने के लिए वह कच्ची नींद सोती।

अस्वस्थ होने पर अपने लिए घरेलू नुस्खे आजमाती,

परंतु हमें वह तुरंत चिकित्सक को दिखलाती।

हमारी लंबी उम्र के लिए करती व्रत और उपासना,

उज्जवल भविष्य के लिए दिन-रात करती प्रार्थना।

ईश्वर का रूप था, मां का स्वरूप।

कहीं नहीं छांव थी , बस सुनहरी धूप।

पता नहीं क्या विचार आया,

ईश्वर ने अपने अक्स को ,अपने पास बुलाया।

मां मेरे हर पल की जरूरत थी,

जिंदगी उसके साथ खूबसूरत थी।

टूटी थी मेरी संसृति,

हर जगह दिखती थी मां की छवि।

उसके कपड़ों को सूंघती, उसकी तस्वीरों को चूमती,

उसकी हर वस्तु में मां को ढूंढती।

शीशे में मैं खुद को निहारती,

क्योंकि सब कहते मैं मां जैसी दिखती।

मां से सब हुनर अनजाने में ही सीखे थे,

आज लगते मीठी वह उपदेश, जो कल तक तीखे थे।

सच है बुरा वक्त साहस और धैर्य से परिचय कराता है,

सोना अग्नि में तप कर और निखर जाता है।

तुम आज भी हो मेरा संबल,

देर से सही ,मैं गई हूं संभल।

सूखे अधरों पर भर रही मुस्कान,

तुम से ही मिली ,मेरे सपनों को पहचान।

मेरी हर सफलता है तुम को समर्पित,

तुम्हारी ममता से कभी नहीं हो सकती ऊऋण।

मां से ज्यादा कोई नहीं करता प्यार ,

चाहती हूं मैं मां,

तुम से ही जन्म लूं बार-बार।



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