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कहने लगे हो शायरी आजकल
बाते कुछ बदल सी गई हैं.
नहीं रही पहले वाली बात तुममें
शामें जैसे थम सी गई हैं.
क्यों नहीं करते हो ,अब भीड़ में ,
सुंदरता की खोज,
या दिखती नहीं , कलियां इस चमन में ,
क्यों आंखे थोड़ी नम सी गई हैं,
कहने लगे हो शायरी आजकल
बाते कुछ बदल सी गई है.......
क्या नहीं करता मन तुम्हारा अब ,
हर रोज कुछ नया करने को..
इस अविरल काटों को बुनकर,
गागर में सागर भरने को..
ये उदासी क्यों है, चेहरे पर तुम्हारे ..
क्या मुस्कान गई कुछ करने को,
वो होठों की अभिवृत छटा,
वो उनकी प्रत्यावृत्त बला...
जो कहते थे , गंगा पर ही ,
फूलों सा मुझको तरने दो...
क्यों हैं बंद वो आजकल,
या कुछ बर्फ उनपे जम सी गई है,
कहने लगे हो शायरी आजकल
बातें कुछ बदल सी गई हैं.......
नहीं रही वो पहले वाली बात तुममें,
शामें जैसे थम सी गई हैं......
~$hukl@mbuj..
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