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कहने लगे हो शायरी आजकल
बाते कुछ बदल सी गई हैं.
नहीं रही पहले वाली बात तुममें
शामें जैसे थम सी गई हैं.
क्यों नहीं करते हो ,अब भीड़ में ,
सुंदरता की खोज,
या दिखती नहीं , कलियां इस चमन में ,
क्यों आंखे थोड़ी नम सी गई हैं,
कहने लगे हो शायरी आजकल
बाते कुछ बदल सी गई है.......
क्या नहीं करता मन तुम्हारा अब ,
हर रोज कुछ नया करने को..
इस अविरल काटों को बुनकर,
गागर में सागर भरने को..
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