
यूं तो गजलें लिखी हैं कई,
पर लिखते हुए याद आते हो सिर्फ तुम,
इकरार इनकार सबसे दूर मेरे हर ख्याल में आते हो,
स्याही और पन्नों के बीच,
मुझे देखते हुए मुस्कुराते हो तुम,
काली स्याही के हर अक्षर में,
सांवले से बने नजर आते हो ,
मेरे बातें करने के क्रम में ,
मेरी सोच पर छा जाते हो ,
मेरी कविताओं सा मेरी रूह में
समा जाते हो तुम..
तुम्हें लगता है कि आजकल,
बहुत गुमनामी में रहता हूं,
तुमसे बयां कर दूं कि तुम्हारे अलवा,
दूसरा सख्स जमाने में नजर नहीं आता हमें...
तुम्हारा मुझे छोड़कर जाना,
तुम्हारा निजी मसला था,
लाख ख्वाहिशें थी मन में मेरे,
पर मैंने कभी भी इनकार नहीं किया ...
कोई तुम्हारे जैसा हो,
न हो पर किसी से इजहार नहीं किया...
माना की मुझसे दूर चले गए हो तुम,
मेरा ना ही सही ,
पर कभी अपना भी तो पता लो,
आज भी कहीं मेरे दिल के सबसे पास रहते हो तुम...
वक्त बेवक्त मुझे हर रोज याद आते हो तुम...
सोते हुए ख्वाब में से मुझे जगाते हो तुम ,
मन मस्तिष्क में हर जगह नजर आते हो तुम,
ऐसा लगता है अब भी कहीं बुलाते हो तुम...
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