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यूं तो गजलें लिखी हैं कई,
पर लिखते हुए याद आते हो सिर्फ तुम,
इकरार इनकार सबसे दूर मेरे हर ख्याल में आते हो,
स्याही और पन्नों के बीच,
मुझे देखते हुए मुस्कुराते हो तुम,
काली स्याही के हर अक्षर में,
सांवले से बने नजर आते हो ,
मेरे बातें करने के क्रम में ,
मेरी सोच पर छा जाते हो ,
मेरी कविताओं सा मेरी रूह में
समा जाते हो तुम..
तुम्हें लगता है कि आजकल,
बहुत गुमनामी में रहता हूं,
तुमसे बयां कर दूं कि तुम्हारे अलवा,
दूसरा सख्स जमाने में नजर नहीं आता हमें...
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