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तारीफियां सोचें या तेरी खामियां सोचें
मिले कोई नया मसला तुमको ही क्यों सोचें
थे लापरवाह कितने हम
दिल खो दिया सोचें
मशगूल थे तुममें कभी
वो अपनी नादानियां सोचें
गमों के दरमियां भी हंसना
तो अपनी क़हक़हा सोचें
तुम्हें पाने की ज़िद करके
खोना पड़ गया सोचें
लगाने बैठें हिसाब-ए-इश्क़
तो फिर अब गिनतियां सोचें
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