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हृदय के तट पर निशिदिन को प्रेम किरण मुस्काती है।
प्रेम पाश में बधकर कुछ कहने से सकुचाती है।।
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हृदय के तट पर निशिदिन को प्रेम किरण मुस्काती है।
प्रेम पाश में बधकर कुछ कहने से सकुचाती है।।
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