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फितरत समझो या जुर्रत समझो

Pragya ShuklaPragya Shukla February 27, 2022
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फितरत समझो या जुर्रत समझो,

मेरे हस्सास होने को चाहे मगरूरियत समझो।

दिल दे दिया था जब बड़े मशगूल रहते थे,

ग़र तवज्जों ना दूँ तुमको मुझे मगरुर क्यों समझो।



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